इस शहर में रेप से जन्मे बेटे ने बलात्कारी बाप से 30 साल बाद लिया बदला

शाहजहांपुर । बारह साल की वो लड़की अचानक शांत और सहमी-सहमी रहने लगी। वो जैसे कुछ कहना चाहती थी, अपना दर्द बयां करना चाहती थी, लेकिन उसके परिणाम से डरती थी। फिर एक दिन ऐसी सच्चाई का पता चला जिसने उसके परिवार के पैरों तले जमीन खींच ली।12 साल की बेटी प्रेग्नेंट कैसे हो गई। मां को डर था कि फौजी पिता को इस बात की भनक भी लग गई तो घर में कोहराम मच जाएगा।

मां ने जब सिसकती बेटी की दर्दभरी दास्तान सुनी तो जैसे उनका फट गया। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि बेटी की इस समस्या को कैसे सुलझाया जाए।12 साल की वो रेप विक्टिम बेटी आज दादी बन चुकी है। लेकिन इन बीते सालों में उसने क्या क्या तकलीफें झेलीं, यह जानने के लिए जब हमने उससे बात की तो हमारे रोंगटे खड़े हो गए। पढ़िए शाहजहांपुर की रेप विक्टिम बेटी की कहानी…मैं भी अपने गांव की अन्य लड़कियों की तरह सामान्य जिंदगी जी रही थी।

स्कूल जाना, खेलना-कूदना ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा था। अपने भविष्य के लिए मैंने भी बड़े सपने देखे थे। मेरे पापा फौज में थे। मैं भी पुलिस में भर्ती होना चाहती थी।लेकिन उन दोनों भाइयों नकी और गुड्डू ने मेरी जिंदगी नरक बना दी। वो छुपकर मुझे अपनी हवस का शिकार बनाते और विरोध करने पर पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी देते। गांव में उनकी दादागिरी चलती थी इसलिए मैं डर गई।

मैं अपने परिवार का नुकसान होते नहीं देख सकती थी। मैं चुपचाप सब कुछ सहती रही।मैं 12 साल की उम्र में प्रेग्नेंट हो गईमैं नहीं जानती थी कि 12 साल की उम्र में मैं प्रेग्नेंट हो गई हूं। तब मुझे प्रेग्नेंसी के बारे में कुछ पता नहीं था। लेकिन जब मेरे पेट का आकार बढ़ने लगा तो बहन को कुछ गलत होने की आशंका हुई।

जब उसने पूछा तो मैंने बताया कि पीरियड्स नहीं हुए। बहन तुरंत मुझे डॉक्टर के पास ले गई। चेकअप के बाद पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूं।डॉक्टर को अबॉर्शन के लिए कहा तो उन्होंने बताया कि मेरी उम्र कम है और प्रेग्नेंसी का समय ज्यादा हो गया है। अबॉर्शन करने से जान का खतरा हो सकता है।

गांव में किसी को इस बात का पता न चले इसलिए मां ने मुझे बहन के ससुराल भेज दिया।दीदी और जीजाजी ने मेरा बहुत ध्यान रखा। गुस्से में तमतमाए जीजाजी जब उस लड़के से मिलने गए तो उसके दोस्तों ने मिलकर उन्हें बहुत पीटा। हमारे पास खामोश रहने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

ससुराल वालों से रेप की बात छुपाईजब मैं मां बनी तो घरवालों ने मुझसे झूठ बोला कि मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ है। वो मेरा भविष्य खराब नहीं करना चाहते थे। मैंने उनकी बात को सच मान लिया। मां ने फिर कभी मुझे अपने गांव नहीं जाने दिया।दीदी के घर में ही मेरी शादी तय हुई और वहीं से बिदाई हुई। मेरे अतीत का असर मेरे भविष्य पर ना पड़े इसलिए घरवालों ने मेरे ससुराल वालों से रेप की बात छुपाई। कुछ सालों तक तो सबकुछ अच्छा चलता रहा। लेकिन फिर ससुराल वालों को भी मेरे अतीत की सच्चाई का पता चल गया। उसके बाद मेरा ससुराल में रहना मुश्किल हो गया।

जब बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया तो दीदी ने मुझे फिर से अपने घर बुला लिया।मैं फिर मां बनने वाली थीजब मैं ससुराल की यातनाओं से तंग आकर मैं फिर से दीदी के घर रहने आ गई तो पता चला कि मैं एक बार फिर से मां बनने वाली हूं। मैं अपने बच्चे को जन्म देना चाहती थी। इसमें दीदी और जीजाजी ने मेरा पूरा साथ दिया।मैं अब और असहाय बनकर नहीं जीना चाहती थी इसलिए मैंने काम करना शुरू किया। बेटे के जन्म के बाद भी मैं काम करती रही। उसे पढ़ाया-लिखाया, अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया।

जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी थी कि फिर से मेरी जिंदगी का अतीत सामने आकर खड़ा हो गया।रेप से जन्मे बेटे ने इंसाफ दिलायासालों बाद मुझे ये बताया गया कि रेप से जन्मा मेरा बेटा जिंदा है और मुझसे मिलना चाहता है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर नियति ने मेरे भाग्य में लिखा क्या है। जब मैं पहली बार अपने बड़े बेटे से मिली तो उससे लिपटकर खूब रोई। अब मैं उसे खुद से अलग नहीं करना चाहती थी।

मैं ये सोचकर कांप जाती थी कि पता नहीं मेरे बच्चे ने समाज के कैसे कैसे ताने सुने होंगे। तब से दोनों बेटे मेरे साथ रहते हैं।मेरा बेटा हमारे साथ हुए अन्याय का बदला लेना चाहता था। उसने कहा कि हमें उन बलात्कारियों को खोजना होगा और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलानी होगी। दो साल तक हम उन दोषियों को खोजते रहे। ये काम इतना आसान नहीं था।

लेकिन मेरा बेटा तब तक चैन से बैठने वाला नहीं था।आखिरकार 30 साल बाद हम उन दोषियों को सजा दिलाने में कामयाब हुए। ये सिर्फ मेरी या मेरे बेटे की जीत नहीं। उन सभी बेटियों के हक की लड़ाई है, जिन्हें सबकुछ सहते हुए खामोश रहने की हिदायत दी जाती है। लोक-लाज के नाम पर जिन्हें अपना दर्द बयां करने तक का मौका नहीं दिया जाता।मेरा ये मानना है मुंह छिपाकर बलात्कारियों को रहना चहिए। हम अपनी बेटियों की आवाज को क्यों दबा देते हैं। मैं नहीं चाहती कि जो कुछ मैंने सहा वो किसी भी बेटी को सहना पड़े। मेरा सभी माता-पिता से अनुरोध है कि अपनी बेटियों उड़ना सिखाइए, किसी के आगे दबना या झुकना नहीं।

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