सूरजपुर में 30 बाल श्रमिकों का रेस्क्यू, जिला प्रशासन की कार्रवाई पर उठे सवाल, जमीनी हकीकत उजागर

संवाददाता◆हाथोर समाचार

सूरजपुर। जिले में जिला प्रशासन ने बाल श्रम के खिलाफ बड़ी कार्रवाई का दावा किया है। जिला कलेक्टर श्री एस. जयवर्धन के निर्देश पर जिला बाल संरक्षण इकाई ने रामानुजनगर के दुरस्त गांव में छापेमारी कर 30 बाल श्रमिकों को रेस्क्यू किया। इन बच्चों को रोपा लगाने के लिए दूसरे गांवों में ले जाया जा रहा था। रेस्क्यू किए गए बच्चों में 12 प्राथमिक, 10 माध्यमिक और 5 हाई स्कूल के छात्र-छात्राएं शामिल हैं, जबकि 3 बच्चों का किसी भी स्कूल में नामांकन नहीं है। सभी बच्चों को बाल कल्याण समिति, सूरजपुर में प्रस्तुत किया गया, जहां उनकी काउंसलिंग की गई और शिक्षा के महत्व पर जोर दिया गया। बहरहाल जिला प्रशासन के इस अभियान को सराहना तो मिल रही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई बाल श्रम की जड़ों को खत्म कर पाएगी..? स्थानीय जानकारों की मानें तो जब तक ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा, तब तक बाल श्रम जैसी सामाजिक बुराइयां खत्म नहीं होंगी। प्रशासन को चाहिए कि बच्चों को स्कूलों में लाने के लिए प्रोत्साहन योजनाएं लागू करे और परिजनों को वैकल्पिक रोजगार के अवसर प्रदान करे। इसके साथ ही यह समस्या गहरी और जटिल है। दावों और वास्तविकता के बीच का अंतर तभी कम होगा, जब प्रशासन, समाज और सरकार मिलकर ठोस और दीर्घकालिक उपाय करें। बच्चों का बचपन बचाने के लिए न केवल कार्रवाई, बल्कि शिक्षा और जागरूकता का प्रसार जरूरी है

जिला प्रशासन का दावा: कड़ाई से कार्रवाई

जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री शुभम बंसल के मार्गदर्शन में जिला बाल संरक्षण इकाई, श्रम विभाग, पुलिस और महिला एवं बाल विकास विभाग की संयुक्त टीम ने यह कार्रवाई की। श्री बंसल ने परिजनों को सख्त हिदायत दी कि छोटे बच्चों से श्रम कराना गंभीर अपराध है और इसमें शामिल लोगों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। रेस्क्यू अभियान में एक पिकअप वाहन, दो ऑटो और एक अल्टो कार से बच्चों को ले जाते पकड़ा गया। जिला प्रशासन का कहना है कि इस कार्रवाई से बाल श्रम के खिलाफ कड़ा संदेश गया है और भविष्य में ऐसी घटनाओं पर सख्ती बरती जाएगी।

जमीनी हकीकत: दावों और वास्तविकता में अंतर

हालांकि, इस कार्रवाई के बावजूद जमीनी हकीकत जिला प्रशासन के दावों से मेल नहीं खाती। जांच में पता चला कि दुरस्त गांव से करीब 100 बच्चे रोजाना दूसरे गांवों में काम करने ले जाए जाते हैं। रेस्क्यू की खबर फैलते ही कई वाहन चालकों ने बच्चों को गाड़ियों से उतार दिया, जिससे कार्रवाई का दायरा सीमित रह गया। ग्रामीणों का कहना है कि गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं। बच्चों को रोपा लगाने के लिए 300-350 रुपये प्रतिदिन दिए जाते हैं, जबकि वाहन चालक किसानों से 500 रुपये वसूलते हैं। बच्चे सुबह खेतों में छोड़ दिए जाते हैं और शाम 7 बजे तक घर लौटते हैं, इस दौरान उन्हें केवल बिस्किट जैसे न्यूनतम भोजन मिलता है।

बाल श्रम की गंभीर स्थिति

यह पहली बार नहीं है जब सूरजपुर में बाल श्रम की समस्या सामने आई है। जिले के कई गांवों में छोटे बच्चे स्कूल जाने के बजाय खेतों, दुकानों और अन्य कार्यों में लगे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट व कमजोर आर्थिक स्थिति केकारण बच्चे पढ़ाई छोड़कर मजदूरी की ओर बढ़ रहे हैं। प्रशासन द्वारा समय-समय पर रेस्क्यू अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन स्थायी समाधान के अभाव में यह समस्या बार-बार उभर रही है। जानकारों की मानें तों केवल रेस्क्यू और काउंसलिंग से काम नहीं चलेगा, बल्कि शिक्षा, रोजगार और जागरूकता के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

कार्रवाई में शामिल टीमें

रेस्क्यू अभियान में जिला बाल संरक्षण इकाई से अखिलेश सिंह, श्रम विभाग से रमेश साहू, डोला मणि मांझी, फरिश्वर विश्वकर्मा, चाइल्ड हेल्पलाइन से जनार्दन यादव, रमेश साहू, प्रकाश राजवाड़े, महिला एवं बाल विकास विभाग से श्रीमती ममता पास्ते, पुलिस से एएसआई मनोज पोर्ते, आरक्षक बिरन सिंह, अमलेश्वर सिंह, दीपक यादव और राजेश नायक शामिल थे। बाल कल्याण समिति में सुश्री किरण बघेल, संजय सोनी, नंदिता सिंह, अमृता राजवाड़े, रुद्र प्रताप राजवाड़े, प्रियंका सिंह, जैनेंद्र दुबे, अंजनी साहू, सखी सेंटर से विनिता सिन्हा, साबरिन फातिमा, चंदा, शारदा सिंह, पार्वती और चाइल्ड हेल्पलाइन से दिनेश यादव व नंदिनी खटीक मौजूद थे।

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