बिट्टू सिंह राजपूत ◆हाथोर समाचार
सरगुजा। जिले के दूरस्थ आदिवासी अंचल की तस्वीर अब बदलने लगी है। विशेष पिछड़ी जनजाति (PVTG) में शामिल पहाड़ी कोरवा समाज की महिलाएं अब केवल जंगल-पहाड़ तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि अब वे पीएम आवास निर्माण जैसे तकनीकी कार्यों में भागीदारी कर रही हैं। ये महिलाएं न सिर्फ आत्मनिर्भर बनी हैं, बल्कि दूसरे ग्रामीणों के लिए प्रेरणा भी बन गई हैं।

यह परिवर्तन शुरू हुआ प्रधानमंत्री जनमन योजना के तहत। इस योजना में जिला प्रशासन को PVTG बस्तियों तक आवास, सड़क, बिजली सहित सभी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई। जब बड़ी संख्या में पीएम आवास स्वीकृत हुए, तब तेजी से निर्माण कार्य करवाना एक बड़ी चुनौती बन गया।
इस चुनौती से निपटने एनआरएलएम विभाग को जोड़ा गया और महिला स्व-सहायता समूहों को गृह निर्माण कार्य से जोड़ा गया। इन समूहों की महिलाओं ने लोन लेकर सेंट्रिंग प्लेट और सीमेंट मिक्सर मशीन का व्यवसाय शुरू किया। आज ये महिलाएं न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं, बल्कि तेजी से आवास निर्माण में सहयोग भी कर रही हैं।
पहाड़ी कोरवा महिला सुशीला बनीं बदलाव की मिसाल
अंबिकापुर जनपद के रामनगर ग्राम पंचायत के बरपारा की सुशीला, जो स्वयं पहाड़ी कोरवा जनजाति से हैं, अपने समूह के साथ मिलकर अब सेंट्रिंग प्लेट का संचालन कर रही हैं। सुशीला बताती हैं,
“हम 2013 से समूह से जुड़े हैं। पहले छोटे-मोटे काम करते थे, लेकिन जब आवास निर्माण शुरू हुआ तो हमने 90 हजार का लोन लेकर सेंट्रिंग प्लेट खरीदीं। अब गांव में हम खुद प्लेट किराये पर देते हैं और एक आवास से 8 से 9 हजार रुपये तक की आमदनी होती है।”
10 हज़ार से ज्यादा आवासों का निर्माण या पूर्णता की ओर
जिला पंचायत सीईओ विनय अग्रवाल ने बताया,
“सरगुजा में अब तक 31,772 सामान्य पीएम आवास और 2,565 जनमन आवास स्वीकृत किए गए हैं। इनमें से 8,632 आवास और 637 जनमन आवास पूर्ण हो चुके हैं, जबकि 20,631 सामान्य और 1,701 जनमन आवासों का निर्माण प्रगति पर है।”
उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में आवासों के निर्माण को समय पर पूरा करने के लिए 281 समूहों द्वारा ईंट निर्माण कराया गया है। वहीं 413 महिला समूहों ने 782 सेंट्रिंग प्लेट और 9 समूहों ने मिक्सर मशीन किराये पर देने का व्यवसाय शुरू किया है।
रोजगार का नया रास्ता, आत्मनिर्भरता की ओर कदम
इन पहाड़ी कोरवा महिलाओं का यह कदम न केवल उनके आर्थिक विकास का प्रतीक है, बल्कि यह आदिवासी समाज की बदलती सोच और नए युग की ओर बढ़ते कदम का भी परिचायक है। अब ये महिलाएं सिर्फ घर की जिम्मेदार नहीं, बल्कि विकास कार्यों की भागीदार भी हैं।