सूरजपुर। पंचायतों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए भले ही शासन eGramSwaraj जैसे पोर्टल और RTI कानून लागू कर चुका हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। जनपद पंचायत प्रतापपुर अंतर्गत ग्राम पंचायत मायापुर 2 में सरपंच और सचिव की मिलीभगत से 15वें वित्त के करीब 15 लाख रुपये का गबन किए जाने का मामला सामने आया है। eGramSwarajकी वेबसाइट पर अपलोड ब्योरा के मुताबिक सरपंच के भाई चंद्रभान सिंह और सरपंच के परिवार से पंचू राम के नाम पर बिल लगाकर यह राशि आहरण की गई हैं ।जो नियम विरुद्ध है । ऐसे में यह केवल एक साल का मामला है अगर पूरे पांच साल की जांच की जाए तो यह राशि और बढ़ सकती है ।

आरोप है कि सरपंच के रिश्तेदार पंचू राम और पंचायत सचिव के भाई चंद्रभान सिंह के नाम पर वर्ष 2024-25 में 20-25 अलग-अलग बिल बनाकर 15वां वित्त से भुगतान कर दिया गया। हालांकि यह पूरी जानकारी eGramSwaraj पोर्टल पर उपलब्ध है, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है की एक ही दिनांक पर एक ही बिल का तीन-चार बार भुगतान किया गया है ,जिससे साफ़ जाहिर होता है कि दोनों पदाधिकारियों ने पद का दुरुपयोग करते हुए पारदर्शिता की धज्जियां उड़ाईं।
रिश्तेदारों को बना दिया सप्लायर !
स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि जिन व्यक्तियों के नाम पर बिल लगाए गए, उनकी किसी भी तरह के दुकान नहीं है और न ही उनके द्वारा किसी प्रकार का कार्य किया गया। सिर्फ़ कागजों में सप्लाई का काम हुआ, आपूर्ति आदि कार्य दर्शाकर बड़ी राशि की निकासी की गई। संभवतः चुनाव से पहले सरपंच सचिव सरकारी राशि की हेराफेरी किए है ।

RTI में जानकारी देने से इंकार
इस घोटाले की तह में जाने के लिए जब समाजिक कार्यकर्ता बिट्टू सिंह राजपूत द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत पंचायत से संबंधित दस्तावेज मांगे गए, तो पंचायत सचिव ने पहले तो जानकारी टाल दी। जब प्रथम अपील में जनपद स्तर से आदेश आया, तब भी सचिव ने जानकारी देने से मना कर दिया, जो स्पष्ट रूप से RTI अधिनियम 2005 का उल्लंघन है।

जांच और कार्रवाई की मांग
ग्रामीणों का कहना है कि यह एक बड़ा घोटाला है जिसमें स्पष्ट रूप से पद का दुरुपयोग, हितों का टकराव और सरकारी राशि की हेराफेरी हुई है। उन्होंने जनपद पंचायत सीईओ, जिला कलेक्टर और लोकायुक्त से तत्काल जांच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है।

पंचायत स्तर पर योजनाओं का क्रियान्वयन ग्रामीण विकास की रीढ़ है, लेकिन जब पंचायत प्रतिनिधि ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएं तो विकास की उम्मीद अधूरी रह जाती है। मायापुर-2 जैसे मामलों की निष्पक्ष जांच और दोषियों को सजा न मिली तो यह परिपाटी अन्य पंचायतों तक भी फैल सकती है।