राजस्थान के कोटपूतली के कीरतपुरा गांव में बोरवेल में फंसी मासूम चेतना अब भी इस इंतजार में है कि उसे बचाने आए अंकल लोग बाहर निकालेंगे और उसके मम्मी-पापा से मिलवाएंगे. पिछले दो दिनों से चेतना के पेट में अन्न का ना एक दाना गया है और ना ही पानी की एक बूंद. देश ये दुआ कर रहा है कि भगवान अपनी लाडली को हिम्मत दे और वह इन मुश्किलों से लड़ते हुए बोरवेल से बाहर निकले. चेतना को 700 फीट गहरे बोरवेल में फंसे हुए अब दो दिन होने वाले हैं, लेकिन बचावकर्मियों के हाथ मलाल के अलावा अबतक कुछ भी नहीं लगा है. क्योंकि दौसा वाली गलती फिर दोहराई गई है. दरअसल, दौसा में कुछ दिन पहले ही आर्यन नाम का बच्चा बोरवेल में गिर गया था, जिसे बचाने के लिए बड़े स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चला था.

दौसा में एक-एक पल की देरी ने ली थी आर्यन की जान
यह रेस्क्यू ऑपरेशन लेकिन सफल नहीं हो पाया. क्योंकि मासूम आर्यन बोरवेल में दम तोड़ चुका था. करीब 50 घंटे तक आर्यन केवल ऑक्सीजन के सहारे जिंदा रहा. उसे ना तो खाना मिला और ना ही पानी. आर्यन को बचाने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम ने पहले देसी जुगाड़ अपनाया, लेकिन वो काम नहीं आया. इसके बाद उन्होंने बोरवेल के ही समांतर एक नया गड्ढा खोदना शुरू किया. लेकिन तबतक देर हो चुकी थी. इतनी देर की शायद उसी वक्त आर्यन ने दम तोड़ दिया होगा और यही गलती एक बार फिर कोटपुतली में चेतना को बचाने के दौरान दोहराई गई है.
चेतना को निकालने के लिए बुलाई गई पाइलिंग मशीन
एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम ने चेतना को बोरवेल से बाहर निकालने के लिए हुक का इस्तेमाल किया. लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो पैरलल डिगिंग करने का फैसला किया, जिसके लिए मशीन हरियाणा से मंगवाई गई तब तक रेस्क्यू ऑपरेशन रुका रहा. वहीं अपनी लाडली को बोरवेल में फंसा हुआ देख परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है. उनका कहना है कि देर तो पहले ही हो चुकी है और अब मशीन के इंतजार में देर हो रही है.
700 फीट गहरे बोरवेल में फंसी चेतना
बता दें कि सोमवार की दोपहर 2 बजे को चेतना खेलते हुए 700 फीट गहरे बोरवेल में जा गिरी. चेतना बोरवेल में 150 फीट पर बोरवेल में अटक गई. इसके बाद आनन-फानन में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया. पहले चेतना को ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई. इसके बाद कैमरे के जरिए बोरवेल के अंदर फंसी चेतना के मूवमेंट पर नजर रखना शुरू किया गया. मंगलवार की दोपहर को चेतना 120 फीट पर आ गई. लेकिन उसके बाद समस्या शुरू हो गई, जिसके बाद बोरवेल के पैरलल गड्ढा खोदने का फैसला किया गया