सागर। बिहार, कर्नाटक, उड़ीसा जैसे राज्यों में की जाने वाली कुसुम की खेती बुंदेलखंड के लिए भी काफी मुफीद है. जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा कम होती है, उनके लिए इसकी खेती करना अच्छी आमदनी का स्रोत बन सकता है. कुसुम के फूल, बीज, छिल्का, पत्तियां और पंखुड़ियों से लेकर हर चीज का इस्तेमाल होता है. ऊंचे दामों में लोग इनकी खरीदारी करते हैं.
अगर कुसुम की खेती कर इसकी प्रोसेसिंग से उत्पाद तैयार किए जाएं, तो कमाई लाखों में पहुंच सकती है. सागर में कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. डीके पयासी बताते हैं कि कुसुम की से खेती कांटेदार और बिना कांटेदार दोनों तरह की फसल ली जा सकती है, लेकिन इसकी समय अवधि ज्यादा होने की वजह से बहुत कम किसान इसकी खेती करते हैं.जिन किसानों के पास पानी नहीं ,है उनके लिए यह फसल वरदान है.
क्योंकि जब खरीफ की कटाई होती है और खेतों में नमी रहती है, तब उस समय इसकी बुवाई कर दी जाए तो यह फसल हो जाती है. इसके पौधे करीब 6 फीट के होते हैं. फूल रंग-बिरंगे आते हैं. कांटे वाली फसल लगाने से नीलगाय, हिरण, जंगली सूअर, बंदर खेत के अंदर नहीं घुस पाते. ये किसानों के लिए मुफीद है.साल में दो बार करें खेती डॉक्टर ने आगे बताया, अगर किसान जंगली जानवरों से अपनी फसल को सुरक्षित नहीं रख पाते हैं या उन्हें महंगे-महंगे उपाय अपनाने पड़ते हैं.
ऐसे में किसान खेत की मेड़ के चारों तरफ सह फसल के रूप में कुसुम की बुवाई कर सकते हैं. अगर एक या दो पानी इसको दे दिए तो फिर ये बहुत बेहतरीन फसल तैयार होती है. यह कई तरह की मिट्टी में उगने वाली फसल है. इसकी खेती दो बार की जा सकती है. एक तो सितंबर से अक्टूबर और दूसरा जनवरी में इसकी बुवाई की जाती है. यह फसल 150 से 170 दिन में पककर तैयार होती है.एक हेक्टेयर में 30 क्विंटल उपज कुसुम की खेती करने के लिए शंकर प्रजाति के बीच बाजार में बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं. अगर नहीं मिल पा रहे हैं तो कृषि अनुसंधान केंद्र पर भी संपर्क कर सकते हैं, जहां से उनके बीज की व्यवस्था कर दी जाएगी. केवल इसके बीज खरीदने में ही लागत आती है.
न किसी प्रकार की दवा या केमिकल कोई छिड़काव नहीं होता है. इसकी खेती करने में प्रति हेक्टेयर 30,000 की लागत आती है और उत्पादन भी 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है.आराम से हजारों का मुनाफा कुसुम की फसल का औषधीय महत्व होने की वजह से इसकी हर चीज बिकती है. इसकी फसल में कांटे होने की वजह से दस्ताने पहनकर कटाई की जाती है. यानी पंखुड़ियां और फूल निकल जाते हैं, बीज के लिए इसकी हार्वेस्टिंग आसानी से हो जाती है.
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर कुसुम की केवल खेती की जाए, फिर कटाई करने के बाद मंडी में बेच आएंगे तो भी इसे 50,000 तक का मुनाफा बड़े आराम से कमाया जा सकता है.एक फसल से कई फायदे अगर इसकी पंखुड़ियों को निकाल कर सीधा सुखा लेते हैं तो फिर यह डायरेक्ट चाय में इस्तेमाल होती है. 50 ग्राम पंखुड़ियां की कीमत बाजार में अमूमन 500 रुपये है. वहीं क्वालिटी के आधार पर 1 किलो पंखुड़ियां 10,000 से 15,000 रुपये किलो तक हैं.
इन पंखुड़ियों का केसर के साथ भी इस्तेमाल होता है. इसलिए महंगे दामों पर बिकती हैं. इसके बीज से 40% तेल निकलता है तो तेल का प्रोसेस करके भी आमदनी हो सकती है. इसके बाद जो खली निकलती है, उसे पशुओं को पशु आहार के रूप में दे सकते हैं. यानी एक फसल के अनेक प्रकार से फायदे लिए जा सकते हैं.