मनीष गुप्ता ,प्रतापपुर/सूरजपुर। प्रतापपुर जनपद पंचायत में 14वीं और 15वीं वित्त आयोग के तहत आवंटित राशि के फर्जी आहरण का मामला उजागर हुआ है। शुरुआती जानकारी के अनुसार, करोड़ों रुपये की राशि को कागजी दस्तावेजों के जरिए गबन करने का आरोप है। बताया जा रहा है कि यह घोटाला पिछले पांच वर्षों के दौरान हुआ, जिसमें कई पंचायत सचिवों और सरपंचों की संलिप्तता सामने आ रही है।
ग्रामीणों और सूत्रों का दावा: फर्जी बिलों के जरिए आहरण
ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि पंचायतों में विकास कार्य के नाम पर बड़ी राशि का आहरण किया गया, लेकिन जमीन पर कोई काम नजर नहीं आता। सूत्रों के अनुसार, नालों की सफाई, सड़क निर्माण और जल आपूर्ति जैसे कार्यों के लिए फर्जी बिल बनाए गए। कई मामलों में सचिवों ने अपने रिश्तेदारों के नाम पर भी भुगतान किया, जिनका कोई व्यवसायिक अस्तित्व नहीं है।
संभावित घोटाले की चपेट में कई पंचायतें
खैराडीह, सिलौटा, सेमरा कला, केवंरा और रामपुर सहित कई पंचायतों में यह घोटाला होने की संभावना है। आरोप है कि इन पंचायतों में बिना किसी वास्तविक विकास कार्य के सरकारी धन निकाला गया।
जांच की मांग, प्रशासन ने दिया आश्वासन
मामले के सार्वजनिक होने के बाद ग्रामीणों ने उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। जिला पंचायत सीईओ नंदनी साहू ने कहा, “मामले की जानकारी मिली है, और इसे गंभीरता से लेते हुए जांच की जाएगी। दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी।”
आचार संहिता से पहले घोटाला
चुनावी आचार संहिता लागू होने से पहले इस घोटाले के उजागर होने से प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो यह घोटाला प्रशासन और पंचायत तंत्र की बड़ी विफलता को उजागर करता है।
जानकारों का मानना है कि इस मामले की जांच यदि निष्पक्ष और गहनता से की जाती है, तो पंचायत स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार के अन्य मामलों का भी खुलासा हो सकता है। यह ग्रामीण विकास और सरकारी योजनाओं की पारदर्शिता के लिए एक बड़ी चुनौती है।
अब देखना होगा कि इस मामले में प्रशासन कितना तत्परता से कार्रवाई करता है और जनता को कितना न्याय मिल पाता है।