सोने की कीमतें पिछले एक साल में 30% से अधिक बढ़ गई हैं, जिससे आम जनता और निवेशकों में एक खलबली है. इस समय में सोने की कीमतें 58,500 रुपये प्रति 10 ग्राम से बढ़कर 78,770 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गईं. इस बढ़ोतरी ने भारत की सरकार को भी सोचने और एक्शन लेने पर मजबूर कर दिया. वित्त मंत्रालय ने हाल ही में संसद में बताया कि सोने के इम्पोर्ट पर सीमा शुल्क कम करने, पारदर्शिता बढ़ाने, और वित्तीय निवेश को प्रोत्साहित करने जैसे उपाय किए गए हैं.
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लिखित जवाब में बताया कि सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में सोने के आयात पर सीमा शुल्क को 15 फीसदी से घटाकर 6 फीसदी कर दिया है. इसका उद्देश्य डोमेस्टिक ज्वैलरी इंडस्ट्री को बढ़ावा देना और उपभोक्ताओं के लिए सोना सस्ता करना था.
जब त्योहारों और शादी के सीजन पर सोने की बढ़ती कीमतों के प्रभाव के बारे में पूछा गया, तो मंत्री ने बताया कि सरकार सोने की कीमतों की निगरानी कर रही है, लेकिन इस पर किसी विशेष प्रभाव का आकलन या कीमतों को कंट्रोल करने की योजना नहीं बनाई गई है.
आरबीआई द्वारा सोने की खरीदारी
बढ़ती कीमतों के बावजूद आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) द्वारा सोने की खरीदारी पर भी सवाल उठे. इस पर पंकज चौधरी ने स्पष्ट किया कि सोना विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा है और इसकी खरीद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में की जाती है. इसका घरेलू बाजार पर कोई सीधा असर नहीं पड़ता. मार्च 2023 में विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी 7.81 फीसदी थी, जो मार्च 2024 में बढ़कर 8.15 फीसदी हो गई. यह बढ़ोतरी वैल्यूएशन में बदलाव आने और अधिग्रहण के कारण हुई है.
सोने की शुद्धता और मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सरकार ने हॉलमार्किंग जैसे उपायों पर जोर दिया है. भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) हॉलमार्किंग के जरिए उपभोक्ताओं का विश्वास बनता है. इसके अलावा, प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) बाजार में अनुचित व्यवहार और कार्टेल जैसी समस्याओं से निपटने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है
वैकल्पिक निवेश का प्रोत्साहन
सरकार वित्तीय निवेश के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियानों पर भी काम कर रही है. मंत्री ने कहा कि विभिन्न वित्तीय साधनों में निवेश को बढ़ावा देना, सोने पर निर्भरता को कम करने का एक लॉन्ग टर्म उपाय है.