बिट्टू सिहं राजपूत,वाड्रफनगर/रघुनाथनगर। केंद्र सरकार का “हर घर नल, हर घर जल” मिशन जहां देशभर में लाखों परिवारों के लिए जीवन रेखा बन रहा है, वहीं रघुनाथ नगर में यह नारा एक क्रूर मजाक बनकर रह गया है। एक रसूखदार बीजेपी नेता ने स्कूल रोड पर स्थित शासकीय नल को अपनी निजी हवेली की बाउंड्री में कैद कर लिया है, जिससे मोहल्ले के सैकड़ों परिवार पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। बच्चे स्कूल जाने से पहले पानी को तरसते हैं, महिलाएं दूर-दूर तक पानी की जुगत में भटकती हैं, और बुजुर्ग प्यास की तड़प में रातें काटते हैं। लेकिन सत्ता के दबाव और भय के साये में न सरपंच बोल पा रहे हैं, न पंच, और न ही आम नागरिक। ऐसे आलम में क्या रघुनाथनगर की प्यास बुझेगी…? क्या सत्ता का रसूख पानी के हक पर भारी पड़ेगा…? यह सवाल न केवल प्रशासन के लिए, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए एक चुनौती है। समय इसका जवाब देगा
जल संकट ही नहीं, लोकतंत्र पर संकट
रघुनाथनगर के स्कूल रोड पर हाल ही में बने इस बीजेपी कार्यकर्ता के आलीशान मकान ने न केवल जमीन हड़पी, बल्कि जनता के हक का पानी भी छीन लिया। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि इस नेता ने शासकीय नल को अपनी बाउंड्री में शामिल कर उसे निजी संपत्ति बना लिया है। पानी की एक-एक बूंद के लिए मोहताज लोग जब इसका विरोध करने की हिम्मत जुटाते हैं, तो उन्हें झूठे केस में फंसाने, मारपीट करने, या नौकरी से ट्रांसफर करवाने की धमकियां मिलती हैं। एक स्थानीय निवासी, जिसने नाम न छापने व पहचान जाहिर न करने की शर्त पर बताया, “हमारे पास कोई चारा नहीं है। अगर हम आवाज उठाएं, तो हमारे बच्चों का भविष्य दांव पर लग जाएगा। यह नेता इतना प्रभावशाली है कि प्रशासन भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता।” क्या यही है सरकार का वादा, जो हमें पानी तक के लिए तरसने को मजबूर कर रहा है….?”
सत्ता का दुरुपयोग, जनता की बेबसी
यह मामला केवल एक नल के कब्जे का नहीं, बल्कि सत्ता के दुरुपयोग और लोकतंत्र की मूल भावना पर गहरी चोट का है। जब सत्ता के रसूख के आगे सरपंच और पंचायत प्रतिनिधि भी खामोश हो जाएं, जब आम आदमी अपनी आवाज उठाने से पहले सौ बार सोचे, तो सवाल उठता है कि “जनता की सरकार” का दावा कितना खोखला है…? रघुनाथनगर की यह घटना साबित करती है कि सत्ता का अहंकार कैसे आम आदमी के मौलिक अधिकारों को कुचल सकता है।
स्थानीय युवा रमेश (बदला हुआ नाम) ने गुस्से में कहा, “हमारे मोहल्ले में पानी की पाइपलाइन तो बिछाई गई, लेकिन उसका फायदा सिर्फ एक व्यक्ति को मिल रहा है। क्या यही है विकास…? क्या यही है समानता…?” उनकी बात में दर्द और आक्रोश साफ झलकता है।
प्रशासन की सुस्ती, आश्वासनों का ढोंग
जब इस मामले पर स्थानीय पत्रकारों ने तहसीलदार रघुनाथनगर के समक्ष उठाया, तो उन्होंने त्वरित कार्रवाई का वादा किया। तहसीलदार ने कहा, “यह मामला अत्यंत गंभीर है। हम तत्काल जांच शुरू करेंगे और कानून के तहत सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे।” लेकिन स्थानीय लोगों का विश्वास प्रशासन पर से उठ चुका है। एक बुजुर्ग ने तंज कसते हुए कहा, “आश्वासन तो पिछले कई महीनों से मिल रहे हैं, लेकिन नल अभी भी उसकी बाउंड्री में कैद है। क्या प्रशासन को भी उस नेता का डर है…?”
सामाजिक सरोकार: पानी ही नहीं, सम्मान की लड़ाई
पानी केवल एक संसाधन नहीं, बल्कि जीवन का आधार और मानवता का प्रतीक है। इसे निजी कब्जे में लेना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग के खिलाफ अपराध है। रघुनाथ नगर के इस प्रकरण ने न केवल जल संकट को उजागर किया, बल्कि सत्ता और रसूख के दुरुपयोग की गहरी खाई को भी सामने ला दिया। यह घटना हर उस व्यक्ति को झकझोरती है, जो लोकतंत्र और समानता में विश्वास रखता है।
मानवीय संवेदना की पुकार
रघुनाथ नगर के लोग आज केवल पानी के लिए नहीं, बल्कि अपने आत्मसम्मान और अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। एक मां की आंखों में अपने बच्चों के लिए पानी की तलाश, एक बुजुर्ग की बेबसी, और एक युवा का सिस्टम के प्रति गुस्सा—यह सब इस कहानी का हिस्सा है। यह समय है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी समझें। तत्काल जांच हो, अवैध कब्जा हटाया जाए, और जनता को उनका हक मिले।
जनता की अपील, सरकार का इम्तिहान
रघुनाथनगर की यह घटना एक छोटे से गांव की कहानी नहीं, बल्कि जिले व संभाग के हर उस कोने की हकीकत है, जहां सत्ता का दुरुपयोग आम आदमी को उसके हक से वंचित करता है। हमारी अपील है कि जिला प्रशासन, राज्य सरकार और जनप्रतिनिधि इस मामले को गंभीरता से लें। नल को मुक्त कराया जाए, दोषी के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, और रघुनाथनगर के लोगों को न केवल पानी, बल्कि लोकतंत्र में विश्वास भी वापस मिले।