बिट्टू सिंह राजपूत ◆हाथोर समाचार
सूरजपुर |प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत जिले में सैकड़ों मकान अधूरे पड़े हैं। निर्माण सामग्री की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि और महंगाई के कारण शासन से मिलने वाली अनुदान राशि अब मकान निर्माण के लिए नाकाफी साबित हो रही है। गरीब हितग्राही अधूरे मकानों और अधूरे सपनों के बीच फंसे हुए हैं।

प्रधानमंत्री शहरी और ग्रामीण आवास योजना की शुरुआत वर्ष 2016-17 में हुई थी। शहरी क्षेत्रों में जहां कुछ हद तक मकान पूरे हुए हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश आवास या तो अधूरे हैं या निर्माण शुरू ही नहीं हो पाया है। योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र में 1.20 लाख रुपये का अनुदान और मनरेगा के तहत 90 दिन की मजदूरी दी जाती है, जबकि शहरी क्षेत्र में 2.50 लाख रुपये तक की राशि निर्धारित है।
बीते नौ वर्षों में सीमेंट, छड़, रेत और गिट्टी जैसी आवश्यक निर्माण सामग्री की कीमतों में भारी उछाल आया है। 2016 में जहां सीमेंट की बोरी ₹225 में मिलती थी, वहीं अब यह ₹340-₹350 में बिक रही है। छड़ ₹40 से बढ़कर ₹55 प्रति किलो, रेत की ट्रॉली ₹500 से ₹2,000 और गिट्टी ₹1,500 से ₹3,500 तक पहुंच चुकी है। इस बीच निर्माण कार्य पर 18% जीएसटी का अतिरिक्त भार भी जुड़ गया है।
सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2024 में ग्रामीण आवास योजना के तहत मिलने वाली राशि को 1.30 लाख से घटाकर 1.20 लाख रुपये कर दिया गया है। साथ ही 12,000 रुपये शौचालय निर्माण और मनरेगा के अंतर्गत मजदूरी अलग से दी जा रही है। लेकिन बढ़ती लागत के मुकाबले यह राशि पूरी तरह अपर्याप्त साबित हो रही है।
पंचायत से जुड़े कर्मचारियों ने पहचान न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि बड़ी संख्या में लाभार्थी पहली किश्त मिलने के बाद काम शुरू तो कर देते हैं, लेकिन बजट खत्म होने पर निर्माण अधूरा छोड़ देते हैं। दूसरी ओर जनपद और जिला स्तर से अधूरे पड़े आवासों को शीघ्र पूर्ण कराने का लगातार दबाव डाला जा रहा है।
ऐसे हालात में पंचायत कर्मी और हितग्राही दोनों ही असमंजस और तनाव की स्थिति में हैं। जिलेभर में अधूरे मकानों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन योजना में सुधार या राहत की कोई ठोस पहल अब तक नहीं हुई है।