बिट्टू सिंह राजपूत ,सूरजपुर। जिले के दवनकरा गांव में जल संसाधन विभाग द्वारा करोड़ों रुपये की लागत से नहर निर्माण कराया जा रहा है, लेकिन यह परियोजना शुरू होने से पहले ही भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। ग्रामीणों का कहना है कि घटिया निर्माण के चलते किसानों की वर्षों पुरानी मांग और सपनों पर पानी फिरता दिख रहा है।


जानकारी के अनुसार, नहर निर्माण के लिए तीन गांव – दवनकरा, बरपारा और केवरा – के किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद थी। उन्हें विश्वास था कि सिंचाई सुविधा मिलने से खेती सफल होगी, लेकिन ठेकेदार और विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से मनमाने ढंग से निर्माण कराया जा रहा है।
पारदर्शिता न होना भी बड़ा सवाल
ग्रामीणों का आरोप है कि निर्माण कार्य के दौरान न तो कोई साइड इंजीनियर मौजूद रहता है, न ही निर्माण स्थल पर सूचना पटल लगाया गया है। ठेकेदार द्वारा बिना किसी पारदर्शिता के निर्माण कार्य कराया जा रहा है। गांव के किसान रघुवर ने बताया कि नहर की ढलाई इतनी कमजोर है कि मामूली चोट से ही टूट रही है। मिस्त्रियों और मजदूरों के भरोसे काम चलाया जा रहा है, जिससे गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं रह गई है।

घटिया निर्माण का शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं
गांव के उपसरपंच मुकेश राजवाड़े ने बताया कि जब उन्होंने घटिया निर्माण का विरोध किया तो विभाग के कुछ इंजीनियर मौके पर पहुंचे और कुछ हिस्से को तोड़ने की बात कही, लेकिन उसके बाद भी निर्माण में सुधार नहीं किया गया। आज भी निर्माण स्थल पर जिम्मेदार नदारद रहते हैं, जिससे ठेकेदार मनमानी कर रहा है।

सूचना छिपाने का प्रयास
ग्रामीणों ने बताया कि नहर निर्माण की लागत और समयसीमा जैसी जरूरी जानकारी कहीं सार्वजनिक नहीं की गई है। निर्माण स्थल पर न सूचना पटल है, न कोई बोर्ड। इससे साफ होता है कि ठेकेदार और विभागीय अधिकारी मिलकर गड़बड़ी छिपाने का प्रयास कर रहे हैं।
पुराना इतिहास भी दागदार
यह पहला मामला नहीं है। डुमरिया जलाशय से कोरंधा-बंशीपुर तक बने नहर निर्माण में भी घटिया कार्य की शिकायतें सामने आई थीं। उस समय स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने विरोध दर्ज कराया था, लेकिन विभाग ने आंखें मूंद लीं। यहां तक कि सूचना के अधिकार के तहत मांगे गए दस्तावेज और स्टीमेट तक उपलब्ध नहीं कराए गए।
कमीशनखोरी का खेल
सूत्रों के अनुसार, विभाग और ठेकेदारों के बीच मिलीभगत इतनी मजबूत है कि ठेकेदारों द्वारा मोटी रकम कमीशन के रूप में अधिकारियों तक पहुंचाई जाती है। यही कारण है कि विभागीय अधिकारी न तो गड़बड़ी पर कार्रवाई करते हैं और न ही पारदर्शिता बरतते हैं। कहा जा रहा है कि यदि कोई जनप्रतिनिधि भी स्टीमेट की मांग करता है तो विभाग उन्हें भी गोलमोल जवाब देकर टाल देता है।
ग्रामीणों ने सरकार और उच्चाधिकारियों से मांग की है कि नहर निर्माण कार्य की निष्पक्ष जांच कराई जाए, ताकि दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो और किसानों को उनका अधिकार मिल सके।