अंबिकापुर। येसु समाज के वरिष्ठ धर्मगुरु और सेवा निवृत्त आर्चबिशप पास्कल टोपनो के निधन से ईसाई समुदाय में गहरा शोक व्याप्त है। उनकी स्मृति में अंबिकापुर सहित विभिन्न स्थानों पर शोक सभाएं आयोजित की गईं। श्रद्धालुओं ने शोक यात्रा निकालकर उन्हें अंतिम विदाई दी।लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंबिकापुर के होली क्रॉस अस्पताल में 93 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली।
उनका जन्म 15 जून 1932 को झारखंड के कोनेलोआ गांव में हुआ था। बचपन से ही धर्म और आध्यात्मिकता उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा रही।धार्मिक यात्रा और योगदान1953 में उन्होंने सीतागढ़ में येसु समाज के नवशिष्यालय में प्रवेश किया और सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट्स) के सदस्य बने।

उन्हें उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए बेल्जियम भेजा गया, जहां 1965 में उन्हें पुरोहित अभिषेक प्राप्त हुआ। इसके बाद वे कुनकुरी के लोयोला स्कूल में शिक्षक, रेक्टर और प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत रहे। उन्होंने रांची येसु समाज के प्रोविंशियल के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं।1985 में उन्हें अंबिकापुर का दूसरा धर्माध्यक्ष नियुक्त किया गया और 1986 में उनका अभिषेक संपन्न हुआ। 1994 तक उन्होंने इस पद पर रहते हुए ईसाई समाज के उत्थान और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
समुदाय में शोक और श्रद्धांजलिईसाई समुदाय के प्रमुख सदस्यों ने आर्चबिशप टोपनो के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वे आध्यात्मिक विकास और कलीसिया के मार्गदर्शक रहे। उनकी शिक्षाएं और योगदान सदैव स्मरणीय रहेंगे। उनके सम्मान में विभिन्न गिरजाघरों में प्रार्थना सभाएं आयोजित की गईं।
अंतिम संस्कार और श्रद्धांजलि सभाउनका अंतिम संस्कार नवापारा कैथोलिक महागिरजाघर में संपन्न हुआ, जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। इस अवसर पर विशेष प्रार्थना सभा आयोजित की गई, जिसमें कई धार्मिक और सामाजिक हस्तियों ने भाग लिया।आर्चबिशप पास्कल टोपनो का जीवन समाज सेवा और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक था। उनके निधन से धार्मिक समुदाय ने एक महान संत को खो दिया, लेकिन उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी।