शादियां, जो कभी भारतीय समाज के पारंपरिक रीति-रिवाजों और परिवार के मूल्यों का प्रतीक मानी जाती थीं, अब एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही हैं। पहले शादियां केवल दो परिवारों के मिलन का अवसर होती थीं, लेकिन अब वे फैशन और आधुनिकता के प्रदर्शन का मंच बन चुकी हैं।

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक शादी के मंच पर दूल्हा अपनी दुल्हन को चूमते हुए दिखाई दिया। इस घटना ने इंटरनेट पर बहस को जन्म दिया, जहां लोग अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।
इस फोटो पर जहां कुछ लोगों ने इसे “नए दौर का प्रतीक” कहा, वहीं कुछ ने इसे हमारी पारंपरिक संस्कृति के खिलाफ बताया।
डॉ. फतेह मोहम्मद एक ट्विटर उपयोगकर्ता, ने लिखा, “सनातन धर्म में इसे एडवांस कैटेगरी में रखा जाता है। इसमें दिक्कत नहीं होनी चाहिए।”
सुनिल श्रीवास्तव ने इसे पश्चिमी सभ्यता का असर बताया और लिखा, “चुम्मा-चाटी तो होनी ही है। लेकिन कुछ तो शर्म होनी चाहिए।”
मुकेश गुप्ता- ने कहा, “दादा, जो पीछे खड़े होकर ताली बजा रहे हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए। संस्कार न होने पर पोता कैसे सीखेगा?”
संजय कुमार ने तंज करते हुए लिखा, “अब तो सुहागरात की लाइव स्ट्रीमिंग भी होगी।”
यह घटना केवल एक उदाहरण है कि कैसे आधुनिकता और पारंपरिक मूल्यों के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। जहां एक तरफ युवा पीढ़ी इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्रेम का प्रदर्शन मानती है, वहीं दूसरी तरफ पुराने विचारों वाले लोग इसे सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन समझते हैं।
शादियां अब केवल रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं रहीं। भारी-भरकम खर्च, थीम-बेस्ड समारोह, और सोशल मीडिया पर हर पल का प्रदर्शन आम बात हो गई है। यहां तक कि व्यक्तिगत पलों को भी सार्वजनिक कर दिया गया है, जो कई लोगों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है।
शादियों में बढ़ती अश्लीलता और दिखावे का चलन हमारे समाज के पारंपरिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है। यह सवाल उठता है कि क्या हम आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति और मर्यादा को खोते जा रहे हैं?
इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम अपनी परंपराओं और आधुनिकता के बीच कैसे संतुलन बनाएं। प्रेम और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करना जरूरी है, लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सार्वजनिक मंच पर मर्यादा बनी रहे।
आखिरकार, शादियां केवल व्यक्तिगत खुशी का नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक भी होती हैं। ऐसी घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों को समझने और उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है।