बंगाल से अलग होने के बाद भी दो बार बंटा बिहार ,जानिए बिहार के ऐतिहासिक विरासत और आधुनिक पहचान

पटना। बिहार का इतिहास बेहद प्राचीन और गौरवशाली रहा है। यह भूमि महावीर, बुद्ध, चाणक्य, सम्राट अशोक और गुरु गोविंद सिंह की कर्मभूमि रही है। आधुनिक बिहार की स्थापना 22 मार्च 1912 को हुई, और तभी से इस दिन को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इतिहास के झरोखे से बिहार

बिहार प्राचीन काल से ही शिक्षा, राजनीति और संस्कृति का केंद्र रहा है। वैशाली दुनिया का पहला गणराज्य माना जाता है, और नालंदा में विश्व की सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान थी। गुप्त और मौर्य साम्राज्य ने इसे गौरवान्वित किया। वहीं, मुगलों को हराकर शेरशाह सूरी ने यहां अपनी मजबूत सत्ता कायम की थी।

अलग राज्य बनने की मांग और संघर्ष

ब्रिटिश शासन में बिहार बंगाल का हिस्सा था, जिससे यहां के प्रशासन और विकास में बाधा आ रही थी। 1870 में मुंगेर के उर्दू अखबार मुर्ग-ए-मुसलमान ने पहली बार ‘बिहार बिहारी के लिए’ का नारा दिया। 1894 में बिहार टाइम्स और बिहार बंधु ने इस मांग को और मजबूत किया।

1900 के दशक में स्वतंत्रता सेनानी सच्चिदानंद सिन्हा ने बिहार की अलग पहचान बनाने की लड़ाई शुरू की। बंगाल के प्रभाव के कारण बिहार के सरकारी पदों और नौकरियों पर बंगालियों का वर्चस्व था, जिससे बिहारी समाज लगातार पिछड़ रहा था।

1912 में बिहार की स्थापना

1908 में कांग्रेस ने अपने अधिवेशन में बिहार को अलग प्रांत बनाने का प्रस्ताव पास किया। 22 मार्च 1912 को ब्रिटिश सरकार ने बिहार को बंगाल से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य घोषित किया, और पटना इसकी राजधानी बनी।

झारखंड और उड़ीसा का अलग होना

बिहार विभाजन का सिलसिला यहीं नहीं रुका। 1 अप्रैल 1936 को उड़ीसा (अब ओडिशा) को बिहार से अलग कर दिया गया। इसके बाद, झारखंड राज्य की मांग बढ़ने लगी, और 15 नवंबर 2000 को झारखंड को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बना दिया गया, जिसकी राजधानी रांची रखी गई।

बिहार की वर्तमान स्थिति

आज बिहार विकास के नए पथ पर अग्रसर है। ऐतिहासिक धरोहरों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ यह राज्य शिक्षा, व्यवसाय और उद्योग में तेजी से आगे बढ़ रहा है। बिहार दिवस न केवल इसके गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, बल्कि भविष्य की नई संभावनाओं का संकेत भी देता है।

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