स्पेशल रिपोर्ट , बिट्टू सिहं राजपूत ,सूरजपुर। बच्चों में मोबाइल की लत का सबसे बड़ा कारण बन गया है। डॉक्टर अंकित शर्मा बताते है कि मोबाइल का अत्यधिक उपयोग बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर गहरा असर डाल रहा है। छोटे बच्चों में यह समस्या अधिक देखने को मिल रही है, जहां उनकी नींद, ध्यान और खाने-पीने की आदतें भी प्रभावित हो रही हैं।

डॉक्टरों की राय
डॉ. अंकित ने बताया कि मोबाइल स्क्रीन की नीली रोशनी (ब्लू लाइट) बच्चों की आंखों की रोशनी पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, जिससे आंखों में जलन, धुंधलापन, और सिरदर्द की समस्या बढ़ रही है। इसके अलावा, बच्चों में चिड़चिड़ापन, गुस्सा और अकेलापन जैसी मानसिक समस्याएं भी बढ़ रही हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि माता-पिता को बच्चों के साथ अधिक समय बिताना चाहिए और उन्हें मोबाइल से दूर रखने के लिए रचनात्मक और फिजिकल एक्टिविटीज़ में व्यस्त रखना चाहिए।
परिजनों की परेशानी
सूरजपुर के कुछ स्थानीय लोगों से बात की तो उन्होंने अपनी चिंताएं साझा कीं। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “हमारे बच्चे अब घर के अंदर ही रहते हैं और बाहर खेलना बंद कर चुके हैं। उन्हें बार-बार मोबाइल से दूर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह आसान नहीं है।

एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “शहर हो या गांव, अब हर घर में मोबाइल है। बच्चों को पढ़ाई के नाम पर मोबाइल दिया जाता है, लेकिन वे इसे गेम और वीडियो देखने में इस्तेमाल करने लगते हैं। इससे उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य दोनों प्रभावित हो रहे हैं।”
क्या कहते हैं आंकड़े?
सूरजपुर के जिला अस्पताल की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले छह महीनों में लगभग 95 बच्चों का इलाज आंखों से जुड़ी समस्याओं के लिए किया गया। इनमें से ज्यादातर बच्चों की समस्या का कारण मोबाइल का अत्यधिक उपयोग था। डॉक्टरों के अनुसार, मनोरोग और व्यवहार संबंधी समस्याओं के मामलों में भी तेजी से वृद्धि हुई है।
माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका
विशेषज्ञों का मानना है कि माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों की दिनचर्या में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। बच्चों को फिजिकल एक्टिविटीज़, जैसे खेलकूद और रचनात्मक गतिविधियों की ओर प्रेरित किया जाना चाहिए।
डॉ. अंकित का सुझाव है कि बच्चों को मोबाइल देने की बजाय उनकी एनर्जी को किसी उत्पादक कार्य में लगाने की कोशिश करें। “पढ़ाई के लिए मोबाइल का उपयोग एक समय तक सीमित रखें और परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं,” उन्होंने कहा।
सरकार और समाज की भूमिका
सरकार और समाज को भी इस समस्या से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे। स्कूलों में बच्चों को डिजिटल उपकरणों के सीमित उपयोग के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। साथ ही, ग्रामीण और शहरी इलाकों में बच्चों के लिए खेल के मैदान और अन्य मनोरंजक सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए।
सूरजपुर के इस मामले ने यह साफ कर दिया है कि मोबाइल की लत सिर्फ एक तकनीकी समस्या नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। इस पर समय रहते ध्यान न दिया गया तो इसका बच्चों के भविष्य पर गहरा असर पड़ सकता है।
माता-पिता, डॉक्टर, शिक्षक, और समाज सभी को मिलकर बच्चों को इस लत से बचाने के लिए प्रयास करने होंगे। बच्चों का भविष्य उनके आज के व्यवहार पर निर्भर करता है, और यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि वे स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें।