पटना। बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों में इस बार कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इनमें सबसे दिलचस्प रहा NOTA (इनमें से कोई नहीं) का बढ़ता रुझान। इस बार नोटा दबाने वाले मतदाताओं की संख्या 1.81 फीसदी रही, जो कुल 6,65,870 वोटों के बराबर है। यह आंकड़ा 2020 के मुकाबले थोड़ा अधिक है, लेकिन 2015 के चुनाव की तुलना में काफी कम है।


साल 2020 में 7,06,252 लोगों ने नोटा दबाया था, जो कुल मतों का 1.68 फीसदी था। वहीं 2015 में नोटा का उपयोग करने वाले मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा 9.4 लाख रही थी, जो उस समय कुल 3.8 करोड़ मतदान का 2.48 फीसदी था। चुनाव आयोग ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ईवीएम में नोटा विकल्प शामिल किया था और तब से इसका उपयोग लगातार होता आ रहा है।
उधर, चुनावी नतीजों में भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन प्रचंड बहुमत की ओर बढ़ रहा है। गठबंधन लगभग 200 सीटों पर जीत दर्ज करता दिख रहा है और भाजपा करीब 90 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है।
इस बार मतदान प्रतिशत ने भी नया कीर्तिमान स्थापित किया है। बिहार में 7.45 करोड़ से अधिक मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें से 66.91 फीसदी ने मतदान किया। यह 1951 के बाद का सबसे बड़ा वोटिंग प्रतिशत है। विशेष रूप से महिला मतदाताओं ने इस बार रिकॉर्ड संख्या में मतदान केंद्रों पर पहुंचकर नया इतिहास रच दिया।



