छत्तीसगढ़ की माटी से निकली प्रतिभा को मिला राष्ट्रीय गौरव: मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े

जगदलपुर/रायपुर। बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और जनजातीय कला परंपरा को आज राष्ट्रीय मंच पर ऐतिहासिक मान्यता मिली है। महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने बस्तर के माटीपुत्र, प्रख्यात जनजातीय वाद्य यंत्र निर्माता एवं काष्ठ शिल्पकार पंडीराम मंडावी को पद्मश्री सम्मान 2025 से सम्मानित किया है। यह सम्मान न केवल श्री मंडावी की दशकों की तपस्या और कला साधना का फल है, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक विरासत का भी सम्मान है, जिसे उन्होंने अपने शिल्प और स्वर से जीवंत बनाए रखा।

इस अवसर पर राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े ने गहरी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, “पंडीराम मंडावी जी को पद्मश्री मिलने से बस्तर के हर घर, हर कलाकार और हर जनजातीय आत्मा को गर्व की अनुभूति हुई है। यह सम्मान केवल एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि उस पूरी परंपरा और लोकविरासत को मिला है, जो बस्तर की घाटियों और जंगलों में पीढ़ियों से पल रही थी।”

वर्षों की साधना से मिला सम्मान पंडीराम मंडावी बीते चार दशकों से बस्तर के परंपरागत वाद्य यंत्रों जैसे मुरिया ढोल, तिमकी, नगाड़ा, बंसी, तुरही आदि का निर्माण करते आ रहे हैं। ये वाद्य यंत्र न केवल संगीत का साधन हैं, बल्कि जनजातीय जीवन, उत्सव और धार्मिक अनुष्ठानों का अहम हिस्सा हैं। श्री मंडावी ने इस विलुप्त होती कला को न केवल जीवित रखा, बल्कि उसे शास्त्रीय मंचों से लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों तक पहुंचाया। उनके बनाए वाद्य यंत्रों की मांग देश के कई प्रमुख संगीत संस्थानों, लोक कला संगठनों और संग्रहालयों में है। वे कई राज्यों में कार्यशालाएं लेकर जनजातीय युवाओं को इस पारंपरिक कला में प्रशिक्षित कर चुके हैं।

बस्तर से विश्व पटल तक की यात्रा मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े ने कहा कि बस्तर की कला अब केवल एक क्षेत्रीय पहचान नहीं रही, बल्कि वैश्विक लोक-संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। श्री मंडावी के कार्यों ने यह सिद्ध कर दिया है कि बस्तर की माटी में जन्मी प्रतिभा में विश्व को मंत्रमुग्ध करने की क्षमता है। उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार बस्तर की कला, संस्कृति और कलाकारों को हर संभव सहयोग दे रही है। “मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में हमारी सरकार बस्तर की प्रतिभाओं को निखारने और उन्हें मंच देने के लिए प्रतिबद्ध है।

भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा पंडीराम मंडावी जैसे कलाकार नई पीढ़ी के लिए आदर्श और प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने न केवल परंपरा को जीवित रखा, बल्कि उसे आधुनिक संदर्भों में भी प्रासंगिक बनाया। वे अक्सर यह कहते हैं कि “कला केवल जीविका नहीं, यह आत्मा का संगीत है। जब तक जंगल में एक ढोल बजेगा, तब तक बस्तर जीवित रहेगा।” उनकी यह सोच ही उन्हें एक साधारण कलाकार से जनजातीय संस्कृति के सच्चे दूत में परिवर्तित करती है।

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