बिट्टू सिंह राजपूत ,सूरजपुर। जिला पंचायत सूरजपुर के डाटा सेंटर में लगी भीषण आग अब पूरी तरह बुझाई जा चुकी है, लेकिन उससे उठे सवालों की तपिश अब भी बनी हुई है। घटना के दो दिन बाद जिला प्रशासन ने अधिकृत बयान जारी कर कहा कि आग शॉर्ट सर्किट के कारण लगी थी और इसमें किसी भी तरह की साजिश की संभावना नहीं है। साथ ही, यह दावा भी किया गया कि सभी महत्वपूर्ण अभिलेख सुरक्षित हैं। प्रशासन ने नगर सेना की तत्परता और कार्यालय में मौजूद अग्निशामक यंत्रों की पर्याप्त व्यवस्था का हवाला देते हुए स्थिति पर समय रहते नियंत्रण पाने की बात कही।
जांच समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट का हवाला देकर प्रशासन ने प्रसारित खबरों में लग रहे साजिश के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।
लेकिन, सवाल सिर्फ आग के नहीं हैं — सवाल व्यवस्था के चरित्र पर उठे हैं।
“सिर्फ आग बुझा देने और खंडन जारी कर देने से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती; विश्वास की चिंगारी जलाए बिना पारदर्शिता की रोशनी नहीं फैल सकती।”
अब देखना यह है कि जवाब वक्त देगा या वक्त खुद सवाल बन जाएगा।
जनचर्चा कुछ और कहती है…
आगजनी के तुरंत बाद जिला प्रशासन की प्रारंभिक चुप्पी, जांच समिति में विशेषज्ञों की संभावित कमी और जिला पंचायत सीईओ की खामोशी ने संदेह को और गहरा कर दिया है। यदि सब कुछ पारदर्शी था, तो फायर सेफ्टी से जुड़े स्वतंत्र विशेषज्ञों की टीम गठित क्यों नहीं की गई? जवाबदेही भरे खुले बयानों से दूरी क्यों बनाई गई?
अतीत की परछाई भी हावी है…
यह वही जिला पंचायत है, जहां पहले के कई मामलों की जांच फाइलों में धूल फांकती रही है। ऐसे में इस डाटा सेंटर कांड में दिखाई गई अचानक सक्रियता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। जनता के मन में सवाल उठ रहे हैं कि क्या हर मामले में इसी तरह तत्परता दिखाई जाएगी या यह जोश कुछ दिनों बाद ठंडा पड़ जाएगा?
भरोसा चाहिए या बहाने…?
जनता का सीधा सवाल है — यदि सब कुछ सही है तो हर मामले में इतनी सक्रियता क्यों नहीं दिखाई जाती? क्यों कई जांचें वर्षों से लंबित हैं? अगर इस बार दिखाई गई तत्परता आदत बन जाए, तो जनविश्वास भी लौट सकता है।
वरना, भविष्य में एक और “आग” जिला पंचायत को घेर सकती है — इस बार कागजों में नहीं, जनता के टूटते भरोसे में ।