सूरजपुर। जिले के सरना पारा में दोपहर एक ह्रदयविदारक हादसा हुआ, जिसने न केवल एक मेहनतकश मजदूर की ज़िंदगी को संकट में डाल दिया, बल्कि बिजली विभाग की घोर लापरवाही की पोल भी खोल दी। 11,000 वोल्ट की हाई टेंशन लाइन की चपेट में आने से एक मजदूर बुरी तरह झुलस गया, जिसे गम्भीर अवस्था में जिला चिकित्सालय सूरजपुर में भर्ती कराया गया है।
उसकी हालत नाजुक बनी हुई है अगर आप वीडियो देख लिए तो आपके अंदर का आत्मा कांप जाएगाकैसे हुआ हादसा?प्राप्त जानकारी के अनुसार, आरडीएसएस प्रोजेक्ट के अंतर्गत बाहर की एक कंपनी द्वारा कार्य कराया जा रहा था। कार्यस्थल पर न तो सुरक्षा मानकों का पालन किया गया और न ही हाई वोल्टेज लाइन को बंद कराया गया। मजदूर जैसे ही कार्य में जुटा, वह 11 हजार वोल्ट की करंट की चपेट में आ गया।
कहाँ हैं जिम्मेदार अफसर? स्थानीय नागरिकों और पत्रकारों ने सूरजपुर बिजली विभाग (परियोजना) के कनिष्ठ अभियंता सादफ़ अहमद और लाइनमैन जी.एन. तिवारी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका आरोप है कि इन दोनों की गैरमौजूदगी और लापरवाही के चलते कार्यस्थल पर सुरक्षा को लेकर गंभीर चूक हुई।
आरडीएसएस प्रोजेक्ट के तहत करोड़ों रुपए के बिजली सुधार कार्य हो रहे हैं, लेकिन उन पर निगरानी के लिए जिम्मेदार अफसर अक्सर ‘ग़ायब’ रहते हैं। ठेकेदार मनमानी करते हैं, और ज़मीनी स्तर पर सुरक्षा का नामोनिशान नहीं।पहले भी हुई शिकायतें, लेकिन नहीं हुई कार्रवाईयह पहला मामला नहीं है। पूर्व में भी कनिष्ठ अभियंता और लाइनमैन के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई गई थीं।
बिजली विभाग के प्रबंध निदेशक भीम सिंह कंवर को शिकायत भेजी गई थी, लेकिन न तो कोई विभागीय जाँच हुई और न ही इन अफसरों का स्थानांतरण।इसके पहले ईएसआईसी/ईपीएफ घोटाले में अधीक्षण अभियंता राजेश लकड़ा और ठेकेदार पर न्यायालय के आदेश के बाद एफआईआर दर्ज की गई, फिर भी राजेश लकड़ा को बैकुंठपुर में अधीक्षण अभियंता पद पर पदस्थ रखा गया। इससे यह साफ है कि बिजली विभाग में भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण चरम पर है।अपने ही गाँव में पोस्टिंग: व्यवस्था का मज़ाक।
कनिष्ठ अभियंता की पोस्टिंग उनके गृह ग्राम में, वह भी घर से मात्र 500 मीटर दूरी पर – क्या यह विभागीय नीति का हिस्सा है, या किसी ‘ऊँची पहुंच’ का परिणाम? यह सवाल आम जनता को कचोट रहा है।प्रशासन और पुलिस की चुप्पी: मौन सहमति या मिलीभगत?हैरत की बात यह है कि हादसे के लगभग 24 घंटे बीत गया न तो कोई वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुँचा और न ही पुलिस द्वारा कोई प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज की गई।
क्या यह चुप्पी महज़ संयोग है, या ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच गहरे रिश्तों की ‘ढाल’?“गरीबों की जान की कीमत क्या बस एक फाइल है?” गांववालों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट पड़ा है।उनका कहना है:“शिकायत करो तो कोई सुनता नहीं।”
“फोन करो तो कोई उठाता नहीं।”“ठेकेदार बेलगाम हैं, और अधिकारी मुँह फेर लेते हैं।”यह कैसा ‘जनसेवा विभाग’ है, जहाँ एक गरीब मजदूर की जिंदगी से बड़ा ‘ठेका’ हो गया है?जनता की मांग: हो सख़्त कार्रवाईकनिष्ठ अभियंता और लाइनमैन को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए।ठेकेदार और परियोजना कंपनी पर आपराधिक मामला दर्ज हो।पूरे आरडीएसएस प्रोजेक्ट की स्वतंत्र जांच कराई जाए।संबंधित अधिकारियों की संपत्ति की जांच कर भ्रस्टाचार की जांच तक की जाए।