बिट्टू सिंह राजपूत ,बलरामपुर। जिले के वाड्रफनगर विकासखण्ड के आसनडीह गांव से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसने शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत को उजागर कर दिया है। सबसे हैरानी की बात यह है कि यह स्थिति प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी की विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते के गृहग्राम की है। विधायक बने करीब 20 माह हो चुके हैं और इससे पहले वे इसी पंचायत की सरपंच भी रह चुकी हैं। बावजूद इसके यहां शिक्षा व्यवस्था बैसाखी के सहारे संचालित हो रही है।


दरअसल, गांव का प्राथमिक विद्यालय आंगनबाड़ी केंद्र में संचालित हो रहा है। यहां 40 से 50 नौनिहालों का भविष्य तैयार हो रहा है, लेकिन संसाधनों की भारी कमी बच्चों की पढ़ाई में रोड़ा बनी हुई है। सवाल उठना लाजमी है कि जब विधायक के गांव की यह स्थिति है, तो प्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की तस्वीर क्या होगी।
दो शिफ्ट में होता संचालन
गांव के लोगों ने बताया कि सुबह 7 बजे से 11 बजे तक आंगनबाड़ी भवन में स्कूल चलता है। इसके बाद दोपहर 12 से 3 बजे तक आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन किया जाता है। इस कारण न तो बच्चों को बेहतर पढ़ाई मिल पा रही है और न ही आंगनबाड़ी की गतिविधियां सुचारू रूप से हो रही हैं। ग्रामीणों का कहना है कि नेता और मंत्री विकास के तमाम दावे तो करते हैं, लेकिन हकीकत इन तस्वीरों से साफ देखी जा सकती है।

पहले पेड़ के नीचे होती थी कक्षाएं
करीब तीन साल पहले गांव के साननडांड़ स्थित स्कूल भवन जर्जर हो गया था। तब मजबूरी में बच्चों की पढ़ाई खुले आसमान और पेड़ के नीचे होती थी। मीडिया में मामला उजागर होने के बाद तत्कालीन कलेक्टर ने अस्थायी व्यवस्था के तौर पर स्कूल को एक निजी मकान में शिफ्ट करवाया था। लेकिन मकान मालिक ने कुछ समय बाद अपना घर देने से मना कर दिया। इसके बाद से स्कूल का संचालन आंगनबाड़ी भवन में हो रहा है।
ठेकेदार विधायक का भांजा, काम अधूरा
ग्रामीणों का कहना है कि बच्चों के बैठने के लिए एक अतिरिक्त कक्ष का निर्माण शुरू किया गया था। यह काम विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते के भांजे द्वारा कराया जा रहा था, लेकिन आज तक अधूरा पड़ा है। निर्माण अधूरा रहने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। ग्रामीणों का आरोप है कि विधायक कहती हैं—“गांव में मेरे मन मुताबिक सरपंच बनेगा तभी विकास होगा।” यही वजह है कि शिक्षा जैसी बुनियादी व्यवस्था भी उपेक्षा का शिकार हो रही है।

विधायक पर सवाल, सरकार की किरकिरी
प्रदेश में भाजपा नेतृत्व विष्णुदेव साय के नेतृत्व में विकास की गाथा गढ़ने का दावा कर रहा है, लेकिन अपनी ही पार्टी की विधायक अपने गांव की समस्याओं को दूर करने में नाकाम हैं। इससे सरकार की साख पर भी सवाल उठ रहे हैं। “सबका साथ, सबका विकास” के नारे पर काम करने वाली पार्टी की जनप्रतिनिधि अगर पंचायत चुनाव की नाराजगी का खामियाजा बच्चों से वसूल रही हैं तो यह गंभीर चिंता का विषय है।
बहरहाल आसनडीह गांव की यह स्थिति बताती है कि सत्ता और प्रशासन की उदासीनता का खामियाजा बच्चों के भविष्य को भुगतना पड़ रहा है। अब देखना होगा कि नव नियुक्त शिक्षा मंत्री इस मामले में क्या कदम उठाते हैं और क्या सचमुच बैसाखी पर टिकी शिक्षा व्यवस्था को मजबूती मिल पाएगी।
ग्रामीण व शिक्षकों की पीड़ा
“विधायक गांव आती हैं, सब देखती हैं, लेकिन समाधान नहीं कर पातीं। एक कमरे में स्कूल और आंगनबाड़ी से बच्चों को परेशानी हो रही है।” — रमेश पंडो, ग्रामीण
“एक ही भवन में पहली से पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ाना पड़ रहा है। इसके बाद आंगनबाड़ी चलती है। भारी दिक्कत है।” — सुरेश कुमार, प्रधान पाठक
“11:45 तक इंतजार करना पड़ता है, उसके बाद ही आंगनबाड़ी संचालित कर पाती हूं। बहुत समस्या आती है।” — आंगनबाड़ी कार्यकर्ता
शिक्षा विभाग की सफाई
खंड शिक्षा अधिकारी श्याम किशोर जायसवाल का कहना है कि अतिरिक्त कक्ष का निर्माण जारी है। जैसे ही यह पूरा होगा, पढ़ाई उसमें शिफ्ट कर दी जाएगी। हालांकि सवाल यह है कि महज एक अतिरिक्त कमरे के निर्माण में दो साल से ज्यादा समय क्यों लग गया। ग्रामीणों का आरोप है कि ठेकेदार विधायक का भांजा होने के कारण उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही।